सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. इसमें केंद्र सरकार पर रोहिंग्या प्रवासियों को जबरन निकाले जाने का आरोप लगाया गया है. याचिकाकर्ता का कहना है कि 43 रोहिंग्या प्रवासियों को सरकार ने जबरन समुद्र में छोड़ दिया गया है जिनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग शामिल है. वहीं, कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि जब देश का मुश्किल समय चल रहा है तब आप रोजाना एक नई कहानी लेकर चले आते हैं. आपके पास कोई साक्ष्य नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि किसने सत्यापित किया? वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि हमें म्यांमार से एक फ़ोन आया था. यह म्यांमार के तटों से टेप रिकॉर्डिंग है. सरकार सत्यापित कर सकती है, कोई समस्या नहीं. यह हमारा रिश्तेदार है जिसे निर्वासित किया गया था. उन्होंने हाथ बांध दिए हैं. उन्हें अंडमान द्वीप से जहाज द्वारा यहां लाया गया और समुद्र में छोड़ दिया गया.
जस्टिस कांत ने कहा कि इस देश में साक्ष्य का कानून बहुत प्रसिद्ध है. कृपया हमें बताएं कि यह जानकारी कहां से आई है और किसने कहा कि मुझे इसके बारे में व्यक्तिगत जानकारी है. जब तक कोई व्यक्ति वहां खड़ा होकर देख नहीं रहा हो, तब तक धरती पर आपके कथन की पुष्टि कौन कर सकता है? जब तक कि इस सज्जन के पास सैटेलाइट रिकॉर्डिंग न हो. कोर्ट ने वकील को अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने का समय दिया.
‘यदि आप नहीं रोकेंगे, तो वे मारे जाएंगे’
गोंसाल्वेस ने कहा कि याचिकाकर्ता भारत में है. उसके भाई को निर्वासित कर दिया गया. एक फोन कॉल आया था. इसके साथ ही गोंजाल्विस ने निर्वासन पर रोक लगाने की मांग की. जस्टिस कांत ने कहा कि न्यायालय आने से पहले, सामग्री एकत्र करें. बाहर बैठे लोगों को हमारी संप्रभुता पर हुक्म चलाने नहीं देंगे. गोंजाल्विस ने कहा कि क्या यह न्यायालय आने की जल्दबाजी है? मैं रोक के लिए आता रहूंगा. यदि आप नहीं रोकेंगे, तो वे उसी युद्ध क्षेत्र में पहुंच जाएंगे और मारे जाएंगे.
गोंसाल्विस ने संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट का हवाला दिया. जस्टिस कांत ने कहा कि जहां केंद्र हमारे सामने यह प्रतिबद्धता लेकर आया है कि शरणार्थियों का एक विशेष वर्ग, इस मामले पर 3 दिनों तक बहस हुई. इस बात पर गंभीर विवाद है कि वे शरणार्थी हैं या कुछ और.. गोंसाल्वेस ने कहा कि वे संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त शरणार्थी हैं. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आपके पास कौन का अलार्मिंग तथ्य है. उसे स्पष्ट करिए. किसी दूसरे देश में क्या हो रहा है. वो देखना हमारा काम नहीं है.
आपके पास कोई सामग्री नहीं है- SC
गोंजाल्विस ने कहा कि कृपया गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देश देखें. जस्टिस कांत ने कहा आप सुनिए, किसी दूसरे देश में यह मुद्दा उठा था. कोई भी मानवाधिकारों से इनकार नहीं करेगा. अगर आपको विचार करने लायक कुछ सामग्री मिलती है तो आप हर दिन सोशल मीडिया से इसे इकट्ठा करते रहते हैं. गोंसाल्विस ने कहा कि बिना गृह मंत्रालय के निर्देश के कोई भी रिफ्यूजी वापस नहीं भेजा जा सकता.
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि और भी मामले हैं. इस मामले पर तीन जजों की बेंच सुनवाई कर रही है. आप वहां जाइये. सीजेआई आपका मामला उस बेंच के पास भेंजेगे. हम सीजेआई के पास आपकी अर्जी भेज रहे हैं. जस्टिस सूर्यकांत ने वकील गोंसाल्विस से कहा कि आपके पास कोई सामग्री नहीं है. यह सबकुछ स्पष्ट करने के लिए. अगर आपके पास कोई औचित्यपूर्ण सामग्री आए तो अटॉर्नी जनरल के पास जाइए.
आदेश में जस्टिस कांत ने क्या दर्ज किया?
जस्टिस कांत ने अपने आदेश में कहा, अंतरिम निर्देशों के लिए दायर आवेदन पहले ही अस्वीकार कर दिया गया था. मुख्य मामला 31 जुलाई को 3 न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है. इसमें 8 मई को उपर्युक्त आदेश पारित किया गया, उसी दिन याचिकाकर्ताओं को उनके रिश्तेदार से जानकारी मिली, जो किसी तरह किनारे तक पहुंचने में कामयाब रहे और मछुआरों से फोन करने के लिए कहा..
याचिकाकर्ता की ओर से दिए गए अस्पष्ट, टालमटोल और व्यापक बयानों के समर्थन में बिल्कुल भी कोई सामग्री नहीं है. जब तक आरोपों का समर्थन कुछ प्रथम दृष्टया सामग्री से नहीं किया जाता, तब तक हमारे लिए बड़ी पीठ द्वारा पारित आदेश पर विचार करना मुश्किल है. इन मामलों की भी 31 जुलाई को उन मामलों के साथ तीन जजों की बेंच के समक्ष सुनवाई की जाएगी. हम 3 न्यायाधीशों की पीठ में बैठकर ही यूएन रिपोर्ट पर कोई टिप्पणी करेंगे.